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Kafan Ke Ahkaam Bayan - कफ़न ये एक मोमिन मुस्लमान का आखिर लिबास होता हैं जिसे पहन कर वो अपने असली घर में कबर में दफ़न हो जाता हैं और अल्लाह से जा मिलता हैं अब भले ही वो दुनिया में रहकर मंहगे महंगे कपडे छोड़ जाता हैं जो दुनिया में उसके बगैर वह घर के बहार नहीं निकल पता था। मगर मौत का जाम पिने के बाद वो एक कपडे में अपने घर से निकला जाता हैं
जिस तरह हम दुनिया में रहकर कपड़ो की मालूमात और फैशन का ख्याल रखते हैं और नए नए फैशन में अपने आप को ढलने के लिए उन कपड़ो की हर मालूमात जानकारिया मालूम हासिल करते हैं इस चक्कर में हम अपने नबी की सुन्नत कपड़ो वाली तर्क कर देते हैं जब की हमें ये सब छोड़ कर जाना होता हैं
उसी तरह हमें अपने आखिर कपडा कफ़न Kafan की भीं ज़िन्दगी में रहकर मालूमात कर लेना चाहिए और अपने रिश्तेदारों और अज़ीज़ो को ये मालूमात बताना चाहिए की मैं जब इस दुनिया से जाऊ तो मेरे कफ़न का इस तरह मुझे पहना कर अलविदा देना।
तो आइये कफ़न के अहकाम और बयांन Kafan Ke Ahkaam जानते हैं
कफ़न अच्छा होना चाहिये या'नी मर्द इदैन व जुमुआ के लिये जैसे कपड़े पहनता था और औरत जैसे कपड़े पहन कर मैके जाती थी उस कीमत का होना चाहिये । हदीस में है , मुर्दो को अच्छा कफ़न दो कि वोह बाहम मुलाकात करते और अच्छे कान से तफाखुर करते या'नी खुश होते हैं ।
सफेद कफ़न Kafan बेहतर है कि नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ने फ़रमाया : अपने मुर्दे सफ़ेद कपड़ों में कफ़नाओ ।
पुराने कपड़े का भी कफ़न हो सकता है , मगर पुराना हो तो धुला हुवा हो कि कफन सुथरा होना मरगूब है ।
कफ़न अगर आबे ज़म ज़म या आबे मदीना बल्कि दोनों से तर किया हुवा हो तो सआदत है ।
मोमिन के मय्यत को कफ़न Kafan के तीन कपडे जरुरी हैं, जिसे लुंग , कमीस और चादर कहते हैं
( मदनी वसिय्यत नामा , स . 4 )
Kafan Ke Ahkaam Bayan |
कफन की तफ्सील ( Kafan Ke Ahkaam )
1 ) लिफ़ाफ़ा : या'नी चादर मय्यित के कद से इतनी बड़ी हो कि दोनों तरफ़ से बांध सकें ।
2 ) इज़ार : ( या'नी तहबन्द ) चोटी ( या'नी सर के सिरे ) से क़दम तक या'नी लिफाफे से इतना छोटा जो बन्दिश के लिये जाइद था ।
3 ) कमीस : ( या'नी कफनी Kafan ) गर्दन से घुटनों के नीचे तक और येह आगे और पीछे दोनों तरफ बराबर हो इस में चाक और आस्तीनें न हों । मर्द की कफ़नी कन्धों पर चीरें और औरत के लिये सीने की तरफ़ ।
4 ) सीनाबन्द : पिस्तान से नाफ़ तक और बेहतर येह है कि रान तक हो ।
5 ) ओढ़नी : तीन हाथ होनी चाहिये या'नी डेढ़ गज़ ।
( बहारे शरीअत , हिस्सा 4 , 1/818 )
6 ) उमूमन तय्यार कफ़न Kafan ख़रीद लिया जाता है उस का मय्यित के कद के मुताबिक मस्नून साइज़ का होना ज़रूरी नहीं , येह भी हो सकता है कि इतना ज़ियादा हो कि इसराफ़ में दाखिल हो जाए , लिहाजा एहतियात इसी में है कि थान में से हस्बे ज़रूरत कपड़ा काटा जाए ।
( मदनी वसिय्यत नामा , स .11 , हाशिया , 1 )
ये जरुरी और छोटी से मालूमात आप नमाज़ ए जनाज़ा के पहले मय्यत को कफ़न के कुछ कफ़न के अहकाम Kafan Ke Ahkaam हैं इसे पढ़े याद करे और इसाले सवाब के नियत से शेयर करे किसी मरहूम के मय्यत को सवाब पहुंचने के नियत से। अस्सलामु अलैकुम
नमाज़ ए जनाज़ा मुतफर्रिक़ Namaz E Janaza Mutfarrik की बात करे तो कुछ ऐसी बाते जो मय्यत के लिए बहुत जरुई हैं. मय्यत को निलहाते और लिटाते या डोले में जिसमे मय्यत को लेके जाते हैं उसमे मय्यत को किस तरह रखना ये सब मय्यत के लिए बहुत जरुरी हैं बहुत एहम हैं
तो आइये जानते हैं नमाज़ ए जनाज़ा मुतफ़र्रिक़ Namaz E Janaza Mutfarrik की जरुरी मालूमात जो हर मोमिन शायद ही जनता हैं
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( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
इस तरह नमाज़ ए जनाज़ा मुतफ़र्रिक़ Namaz E Janaza Mutfarrik हैं जो हर सुन्नी अक़ीदा मोमिन के मय्यत में अमल करना चाहिए और मय्यत को राहत का सबब बनना चाहिए। इसे पढ़े याद रखे और अमल करे और जरुरी बात इसे शेयर करे इसाले सवाब के नियत से. अस्सलामु अलैकुम
मय्यित को कफन पहनाना कारे सवाब है और कई अहादीसे मुबारका में कफ़न पहनाने वाले के लिये जन्नती हुल्लों और नफीस रेशमी लिबासों की बीशारत दी गई है चुनान्चे , एक हदीसे मुबारका मुलाहा फरमाइये
कफ़न अच्छा होना चाहिये या'नी मर्द इदैन व जुमुआ के लिये जैसे कपड़े पहनता था और औरत जैसे कपड़े पहन कर मैके जाती थी उस कीमत का होना चाहिये । हदीस में है , मुर्दो को अच्छा कफ़न दो कि वोह बाहम मुलाकात करते और अच्छे कान से तफाखुर करते या'नी खुश होते हैं ।
सफेद कफ़न बेहतर है कि नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ने फ़रमाया : अपने मुर्दे सफ़ेद कपड़ों में कफ़नाओ ।
पुराने कपड़े का भी कफ़न हो सकता है , मगर पुराना हो तो धुला हुवा हो कि कफन सुथरा होना मरगूब है ।
कफ़न अगर आबे ज़म ज़म या आबे मदीना बल्कि दोनों से तर किया हुवा हो तो सआदत है ।
( मदनी वसिय्यत नामा , स . 4 )
हज़रते सय्यिदुना अबू उमामा RA से रिवायत है कि नूर के पैकर , तमाम नबियों के सरवर सल्ललाहोअलेवास्सलम ने फ़रमाया : जिस ने किसी मय्यित को कफ़नाया ( यानी कफ़न पहनाया ) तो अल्लाह उसे सुन्दुस का लिबास ( जन्नत का इन्तिहाई नफ़ीस रेशमी लिबास ) पहनाएगा ।
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कफ़न के तीन दरजे हैं :
1 ) ज़रूरत
2 ) किफ़ायत
3 ) सुन्नत
कफने ज़रूरत मर्द व औरत दोनों के लिये येह कि जो मुयस्सर आए और कम अज़ कम इतना हो कि सारा बदन छुपा दे ।
कफ़ने किफ़ायत मर्द के लिये दो कपड़े हैं :
1 ) लिफ़ाफ़ा
2 ) इज़ार
1 ) लिफ़ाफ़ा
2 ) इज़ार
3 ) ओढ़नी
या
1 ) लिफ़ाफ़ा
2 ) कमीस
३ ) ओढ़नी
( बाहारे शरीअत , हिस्सा 41 / 817 )
मर्द के लिये कफ़्ले सुन्नत तीन कपड़े हैं
1 ) लिफाफ
2 ) इज़ार
3 ) कमीस
1 ) लिफाफा
2 ) इज़ार
3 ) कमीस
4 ) सीनाबन्द
5 ) ओढ़नी
( बहारे शरीअत , हिस्सा 4,1 / 817 )
खुन्शा मुश्किल ( या'नी जिस में मर्द व औरत दोनों की अलामात हों और येह साबित न हो कि मर्द है या औरत ) को औरत की तरह पांच कपड़े दिये जाएं मगर कुसुम या जाफ़रान का रंगा हुवा और रेशमी कफ़न उसे नाजाइज़ है ।
जो ना बालिग हद्दे शहवत को पहुंच गया वोह बालिग के हुक्म में है या'नी बालिग को कफ़न में जितने कपड़े दिये जाते हैं उसे भी दिये जाएं और इस से छोटे लड़के को एक कपड़ा और छोटी लड़की को दो कपड़े ( लिफाफा और इज़ार ) दे सकते हैं और लड़के को भी दो कपड़े ( लिफ़ाफ़ा और इज़ार ) दिये जाएं तो अच्छा है और बेहतर यह है कि दोनों को पूरा कफन दें अगचें एक दिन का बच्चा हो ।
1 ) लिफ़ाफ़ा : या'नी चादर मय्यित के कद से इतनी बड़ी हो कि दोनों तरफ़ से बांध सकें ।
2 ) इज़ार : ( या'नी तहबन्द ) चोटी ( या'नी सर के सिरे ) से क़दम तक या'नी लिफाफे से इतना छोटा जो बन्दिश के लिये जाइद था ।
3 ) कमीस : ( या'नी कफनी ) गर्दन से घुटनों के नीचे तक और येह आगे और पीछे दोनों तरफ बराबर हो इस में चाक और आस्तीनें न हों । मर्द की कफ़नी कन्धों पर चीरें और औरत के लिये सीने की तरफ़ ।
4 ) सीनाबन्द : पिस्तान से नाफ़ तक और बेहतर येह है कि रान तक हो ।
5 ) ओढ़नी : तीन हाथ होनी चाहिये या'नी डेढ़ गज़ । ( बहारे शरीअत , हिस्सा 4 , 1/818 )
उमूमन तय्यार कफ़न (kafan ka bayan) ख़रीद लिया जाता है उस का मय्यित के कद के मुताबिक मस्नून साइज़ का होना ज़रूरी नहीं , येह भी हो सकता है कि इतना ज़ियादा हो कि इसराफ़ में दाखिल हो जाए , लिहाजा एहतियात इसी में है कि थान में से हस्बे ज़रूरत कपड़ा काटा जाए । ( मदनी वसिय्यत नामा , स .11 , हाशिया , 1 )
एक मोमिन मुस्लमान के इंतेक़ाल के बाद उसे दफनाया जाता है, दफ़नाने के पहले उसे गुसल दिया जाता हैं और उसकी नमाज़ ऐ जनाज़ा पढाई जाती हैं
मरने के बाद गुसल के बड़े अहमियत हैं और बहुत सवाब हैं, गुसल देने से पहले अछि अछि नियति भी करना जरुरी हैं और ये नियत गुसल देने वाले को करनी चाहिए निचे गुसल की नियत दी गई हैं
Mard Mayyat Ko Gusal Ka Tarika |
अगरबत्तियां या लूबान जला कर तीन या पांच या सात बार गुस्ल के तख्ते को धूनी दें या'नी इतनी बार तख्ते के गिर्द फिराएं , तख्ते पर मय्यित को इस तरह लिटाएं जैसे कब्र में लिटाते हैं ,
नाफ़ से घुटनों समेत कपड़े से छुपा दें , ( आज कल गुस्ल के दौरान सफेद कपड़ा उढ़ाते हैं और इस पर पानी लगने से मय्यित के सत्र की बे पर्दगी होती है लिहाजा कथ्थई या गहरे रंग का इतना मोटा कपड़ा हो कि पानी पड़ने से सत्र न चमके , कपड़े की दो तहें कर लें तो ज़ियादा बेहतर )
पर्दे की तमाम तर एहतियात और नर्मी से मय्यित का लिबास उतार लें ।
अब नहलाने वाला अपने हाथ पर कपड़ा लपेट कर पहले दोनों तरफ़ इस्तिन्जा करवाए ( या'नी पानी से धोए )
फिर नमाज़ जैसा वुज़ करवाएं या'नी मुंह फिर कोहनियों समेत दोनों हाथ तीन तीन बार धुलाएं ।
फिर सर का मस्ह करें ,
फिर तीन बार दोनों पाठं धुलाएं ,
मय्यित के वुजू में पहले गिट्टों तक हाथ धोना ,
कुल्ली करना और नाक में पानी डालना नहीं है , अलबत्ता कपड़े या रूई की फुरैरी भिगो कर दांतों , मसूढ़ों , होंटों और नथनों पर फेर दे ।
फिर सर या दाढ़ी के बाल हों तो धोएं , साबुन या शेम्पू इस्ति'माल कर सकते हैं ।
अब बाई ( या'नी उल्टी ) करवट पर लिटा कर बेरी के पत्तों का जोश दिया हुवा ( जो अब नीम गर्म रह गया हो ) और येह न हो तो ख़ालिस नीम गर्म पानी सर से पाठं तक बहाएं कि तख्ते तक पहुंच जाए
फिर सीधी करवट लिटा कर इसी तरह करें
फिर टेक लगा कर बिठाएं और नर्मी के साथ नीचे को पेट के निचले हिस्से पर हाथ फेरें और कुछ निकले तो धो डालें दोबारा वज़ू और गुस्ल की हाजत नहीं
फिर आखिर में सर से पाठ तक काफूर का पानी बहाएं
फिर किसी पाक कपड़े से बदन आहिस्ता से पोंछ दें ।
एक मरतबा सारे बदन पर पानी बहाना फर्ज है और तीन मरतबा सुन्नत ।
गुस्ले मय्यित में बेतहाशा पानी न बहाएं आखिरत में एक एक कतरे का हिसाब है येह याद रखें ।
इस तरह मर्द मय्यत का गुसल का तरीका Mard Mayyat Ko Gusal Ka Tarika सुन्नति तरीका हैं इसे सवाब के नियत से शेयर करे
मुर्दा अगर पानी में गिर जाए
मुर्दा अगर पानी में गिर गया या उस पर मीह बरसा कि सारे बदन पर पानी बह गया गुस्ल हो गया , मगर ज़िन्दों पर जो गुस्ले मय्यित वाजिब है येह उस वक़्त बरियुज्जिम्मा होंगे कि नहलाएं , लिहाजा अगर मुर्दा पानी में मिला तो ब निय्यते गुस्ल उसे तीन बार पानी में हरकत दे दें कि मस्नून अदा हो जाए और एक बार हरकत दी तो वाजिब अदा हो गया , मगर सुन्नत का मुतालबा रहा ।
अगर मय्यित के बदन की खाल झड़ती हो
अगर मय्यित के जिस्म के किसी हिस्से की खाल खुद ब खुद झड़ रही हो तो उस पर पानी न डाला जाए और उस खाल को मय्यित के साथ दफ्ना दिया जाए । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
मय्यित का बदन अगर ऐसा हो गया कि हाथ लगाने से खाल उधड़ेगी तो हाथ न लगाएं सिर्फ पानी बहा दें ।
मय्यित के बाल व नाखून काटना
मय्यित की दाढ़ी या सर के बाल में कंघा करना या नाखुन तराशना या किसी जगह के बाल मूंडना या कतरना या उखाड़ना , नाजाइज़ व मकरूहे तहरीमी है बल्कि हुक्म येह है कि जिस हालत पर है उसी हालत में दफ्न कर दें , हां अगर नाखुन टूटा हो तो ले सकते हैं और अगर नाखुन या बाल तराश लिये तो कफ़न में रख दें ।
मय्यित के जिस्म का जो उज्व बीमारी वगैरा की वज्ह से निकाला गया हो उन सब को दफनाना होगा । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
इस्लमी बहतों के लिये मदती फूल
हैज़ या निफ़ास वाली या जुनुबिया का इन्तिकाल हुवा तो एक ही गुस्ल काफ़ी है कि गुस्ल वाजिब होने के कितने ही अस्वाब हों सब एक गुस्ल से अदा हो जाते हैं
बेहतर है कि मरहूमा के करीबी रिश्तेदार मसलन मां , बेटी , बहन , बहू वगैरा अगर हों तो उन्हें भी गुस्ल में शामिल कर लिया जाए क्यूंकि घर वाले नर्मी से गुस्ल देंगे ।
हामिला ( Pregnant ) भी गुस्ल दे सकती है
नहलाने वाली बा तहारत हो और अगर जुनुबिया ( जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो ) ने गुस्ल दिया तो कराहत है मगर गुस्ल हो जाएगा ।
अगर मय्यित के नाखूनों पर नेल पोलिश लगी हो और मय्यित को तक्लीफन हो तो जिस कदर मुमकिन हो सके छुड़ाएं , इस के लिये रीमूवर ( Remover ) इस्ति माल कर सकते हैं । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
गुस्ल देते वक्त जो चादर वगैरा मय्यित को उढ़ाई जाती है जब तक उस के नापाक होने का यकीन न हो उसे नापाक नहीं कहेंगे लिहाज़ा उसे इस्ति'माल किया जा सकता है । ( दारुल इफ़्ता अले सुन्नत )
मरने के बाद जीनत करना ( मेक अप व मेहंदी लगाना वगैरा ) नाजाइज़ है । ( दारुल इफ़्ता अले सुन्नत )
अवाम में येह मशहूर है कि गुस्ले मय्यित के लिये जाने वाली इस्लामी बहनों के साथ रूहानी मसाइल हो जाते हैं इस की कोई अस्ल नहीं येह महज़ एक वहम है , इसी तरह येह भी कहा जाता है कि गैर शादीशुदा को मय्यित के करीब नहीं आना चाहिये इस की भी कोई अस्ल नहीं । ( दारुल इफ़्ता अले सुन्नत )
शोहर अपनी बीवी के जनाजे को कन्धा भी दे सकता है , क़ब्र में भी उतार सकता है और मुंह भी देख सकता है सिर्फ गुस्ल देने और बिला हाइल बदन को छूने की मुमानअत है ।
मुतफ़रिक
अगर मय्यित के जिस्म के ज़ख्म पर पट्टी लगी हो , न उखेड़ें । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
केन्यूला लगाने के बाद जो पट्टी लगाई गई है नीम गर्म पानी डालने से अगर बा आसानी निकल जाए तो निकाल दें वरना छोड़ दें ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
गुस्ले मय्यित के बाद अगर खून जारी हो जाए और इस सबब से कफ़न नापाक हो जाए तो न गुस्ल ( दोबारा ) दिया जाएगा और न ही कफन तब्दील किया जाए । बल्कि इस तरह का कोई भी मुआमला हो जाए तो गुस्ल और तक्फ़ीन में से कुछ भी दोबारा न किया जाए अलबत्ता बेहतर है कि जहां से खून बह रहा हो वहां ज़ियादा रूई रख दें कि कफ्त ख़राब न हो । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
नहलाने के बाद अगर नाक कान मुंह और दीगर सूराखों में रूई रख दें तो हरज नहीं मगर बेहतर येह है कि न रखें ।
मय्यित के इस्तिन्जा की जगह को ढेलों से साफ़ करने में हरज नहीं मगर बेहतर है कि हर उस चीज़ के इस्ति माल से बचा जाए जिस से मय्यित को मा'मूली सी भी तक्लीफ़ पहुंचने का अन्देशा हो । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
बगलें और दीगर आज़ा जहां पानी बा आसानी नहीं पहुंचता वहां तवज्जोह से पानी बहाया जाए ।
गुस्ल के दौरान पानी डालते वक्त दुआएं या कलिमा वगैरा पढ़ना जरूरी नहीं , पानी से पाकी हासिल हो जाएगी । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
चारपाई पर भी गुस्ल दिया जा सकता है मगर बेहतर है कि इस के लिये कोई चारपाई मख्सूस कर ली जाए फिर तमाम गुस्ल उसी चारपाई पर दिये जाएं लेकिन अगर किसी ने ऐसा नहीं किया और इस्ति'माली चारपाई पर भी गुस्ल दिया तो हरज नहीं लेकिन बाद में भी उस चारपाई को इस्ति'माल किया जाए यूंही छोड़ देना इस्राफ़ है । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
बा'ज़ जगह दस्तूर है कि उमूमन मय्यित के गुस्ल के लिये कोरे घड़े बुधने ( मिट्टी के नए मटके और लोटे ) लाते हैं इस की कुछ ज़रूरत नहीं , घर के इस्ति'माली घड़े लोटे से भी गुस्ल दे सकते हैं और बा'ज़ येह जहालत करते हैं कि गुस्ल के बाद तोड़ डालते हैं , येह नाजाइज़ व हराम है कि माल जाएअ करना है और अगर येह ख़याल हो कि नजिस हो गए तो येह भी फुजूल बात है कि अव्वलन तो उस पर छीटें नहीं पड़ती और पड़ी भी तो राजेह येह है कि मय्यित का गुस्ल नजासते हुक्मिया दूर करने के लिये है तो मुस्ता'मल पानी की छीटें पड़ी और मुस्ता'मल पानी नजिस नहीं , जिस तरह ज़िन्दों के वुजू व गुस्ल का पानी और अगर फ़र्ज़ किया जाए कि नजिस पानी को छीटें पड़ी तो धो डालें , धोने से पाक हो जाएंगे और अक्सर जगह वोह घड़े बुधने मस्जिदों में रख देते हैं अगर निय्यत येह हो कि नमाजियों को आराम पहुंचेगा और उस का मुर्दे को सवाब , तो येह अच्छी निय्यत है और रखना बेहतर और अगर येह ख़याल हो कि घर में रखना नुहसत है तो येह निरी हमाकृत और बाज़ लोग घड़े का पानी फेंक देते हैं येह भी हराम है । ( बहारे शरीअत , हिस्सा , 4 , 1816 )
गुस्ले मय्यित के बाद मय्यित की आंखों में सुरमा लगाना खिलाफे सुन्नत है । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
मय्यित के मुंह में बत्तीसी लगी हो और अगर बा आसानी निकल सके कि मुर्दे को तकलीफ़ न हो तो निकाल दी जाए और अगर तक्लीफ़ का अन्देशा हो तो न निकाली जाए । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
बद मज़हब की मय्यित को किसी ने गुस्ल देने के लिये कहा तो न जाना चाहिये क्यूंकि बद मज़हब के साथ इस तरह का एहसान करने की शरअन इजाजत नहीं । ( दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत )
औरत अपने शोहर को गुस्ल दे सकती है ।
ग़ुस्ले मय्यत के जरुरी इस्लामिक सुन्नति मालूमात
मय्यित के गुस्ल व कफ़न और दफ्न में जल्दी चाहिये कि हदीस में इस की बहुत ताकीद आई है ।
मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं : हत्तल इमकान दफ्न में जल्दी की जाए , बिला ज़रूरत देर लगाना सख्त नाजाइज़ है कि में मय्यित के फूलने फटने और उस की बे हुरमती का अन्देशा है । ( मिरातुल मनाजीह , जनाजों की किताब , 2/447 )
एक मरतबा सारे बदन पर पानी बहाना फ़र्ज़ है और तीन मरतबा सुन्नत , जहां गुस्ल दें मुस्तहब येह है कि पर्दा कर लें कि सिवा नहलाने वालों और मददगारों के दूसरा न देखे , नहलाते वक्त ख्वाह इस तरह लिटाए जैसे कब्र में रखते हैं या किब्ले की तरफ़ पाउं कर के या जो आसान हो करें ।
नहलाने वाले के लिये जरुरी मालूमात
नहलाने वाला बा तहारत हो । अगर जुनुबी शख्स ( जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो चुका हो ) ने गुस्ल दिया तो कराहत है मगर गुस्ल हो जाएगा ।
अगर बे वुजू ने नहलाया तो कराहत नहीं ।
बेहतर येह है कि नहलाने वाला मय्यित का सब से ज़ियादा करीबी रिश्तेदार हो , वोह न हो या नहलाना न जानता हो तो कोई और शख्स जो अमानत दार और परहेज़गार हो ।
नहलाने वाले के पास खुश्बू सुलगाना मुस्तहब है अगर मय्यित के बदन से बू आए तो उसे पता न चले वरना घबराएगा , नीज़ उसे चाहिये कि ब क़दरे ज़रूरत आ'जाए मय्यित की तरफ़ नज़र करे , बिला ज़रूरत किसी उज्च की तरफ़ न देखे कि मुमकिन है उस के बदन में कोई ऐब हो जिसे वोह छुपाता था ।
मर्द को मर्द नहलाए और औरत को औरत , मय्यित छोटा लड़का है तो उसे औरत भी नहला सकती है और छोटी लड़की को मर्द भी , छोटे से येह मुराद कि हद्दे शहवत को न पहुंचे हों ।
गुस्ले मय्यित के बाद गुस्साल ( गुस्ल देने वाले को गुस्ल करना मुस्तहब है । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )
गुस्ले मय्यित की नियतें - ( नमाज़ ऐ जनाज़ा में मय्यत को गुसल देने की नियत )
अब गुस्ले मय्यित का तरीका बयान किया जाएगा लेकिन पहले कुछ निय्यतें कर लीजिये ।
रिज़ाए इलाही पाने और सवाबे आख़िरत कमाने के लिये मय्यित को गुस्ल दूंगा
फ़र्ज़ किफाया अदा करूंगा
हत्तल मक्दूर बा वुजू रहूंगा
ज़रूरतन गुस्ल से कब्ल मुआविनीन को गुस्ल का तरीका और सुन्नतें बताऊंगा
मय्यित की सत्रपोशी का खुसूसी खयाल रखूगा
आ'जा हिलाते वक्त नर्मी और आहिस्तगी से हरकत दूंगा
पानी के इसराफ़ से बचूंगा
मुर्दे की बे बसी देख कर इबत हासिल करने की कोशिश करूंगा
मस्अला दर पेश हुवा तो दारुल इफ्ता अहले सुन्नत से शरई रहनुमाई हासिल करूंगा •
खुदा न ख्वास्ता मय्यित का चेहरा सियाह हो गया या कोई और तगय्युर हुवा तो ब हुक्मे शरअ उसे छुपाऊंगा और मुआविनीन को भी छुपाने की तरगीब दूंगा
अच्छी अलामत ज़ाहिर हुई मसलन खुश्बू आना , चेहरे पर मुस्कुराहट फैलना वगैरा तो दूसरों को भी बताऊंगा ।
इस्लामी बहन के गुसले मय्यत का तरीका
गुस्ल व कफ़न के लिये इन चीजों का इन्तिज़ाम फ़रमा लें ।
1 ) गुस्ल का तख्ता
( 2 ) अगरबत्ती
3 ) माचिस
4 ) दो मोटी चादरें ( कथ्थई हों तो बेहतर है )
5) रूई
6 ) बड़े रूमाल की तरह के दो कपड़ों के पीस ( इस्तिन्गा वगैरा के लिये )
7 ) दो बाल्टियां
8 ) दो मग
9 ) साबुन
( 10 ) बेरी के पत्ते
( 11 ) दो तोलिये
( 12 ) कफ़न का बिगैर सिला हुवा बड़े अर्ज का कपड़ा
( 13 ) कैंची
14 ) सूई - धागा
15 ) काफूर
16 ) खुश्बू ........
अगरबत्तियां या लूबान जला कर तीन या पांच या सात बार गुस्ल के तख्ने को धूनी दें या'नी इतनी बार तख्ते के गिर्द फिराएं , तख्ते पर मय्यित को इस तरह लिटाएं जैसे कब्र में लिटाते हैं ,
सीने से घुटनों समेत कपड़े से छुपा दें ( आज कल गुस्ल के दौरान सफ़ेद कपड़ा उढ़ाया जाता है और इस पर पानी लगने से मय्यित के सत्र की बे पर्दगी होती है लिहाज़ा कथ्थई या गहरे रंग का इतना मोटा कपड़ा हो कि पानी पड़ने से सत्र न चमके , कपड़े की दो तहें कर लें तो ज़ियादा बेहतर )
पर्दे की तमाम तर एहतियात और नर्मी से मय्यित का लिबास उतारें ।
इसी तरह कील , बुन्दे या कोई और जेवर भी नर्मी से उतार लें
अब नहलाने वाली अपने हाथ पर कपड़ा लपेट कर पहले दोनों तरफ़ इस्तिन्जा करवाए ( या'नी पानी से धोए )
फिर नमाज़ जैसा वुजू करवाएं या'नी मुंह फिर कोहनियों समेत दोनों हाथ तीन तीन बार धुलाएं ,
फिर सर का मस्ह करें ,
फिर तीन बार दोनों पाउं धुलाएं ,
मय्यित के वुजू में पहले गिट्टों तक हाथ धोना ,
कुल्ली करना और नाक में पानी डालना नहीं है , अलबत्ता कपड़े या रूई की फुरैरी भिगो कर दांतों , मसूढ़ों , होंटों और नथनों पर फेर दें ।
फिर सर धोएं , साबुन या शेम्पू या दोनों इस्ति'माल किये जा सकते हैं ( लेकिन इन के ज़ियादा इस्ति माल से बालों में उलझाव पैदा होता है लिहाज़ा बेरी के पत्तों का जोश दिया हुवा पानी काफ़ी है )
अब बाई ( या'नी उल्टी ) करवट पर लिटा कर बेरी के पत्तों का जोश दिया हुवा ( जो अब नीम गर्म रह गया हो ) और येह न हो तो ख़ालिस नीम गर्म पानी सर से पाउं तक बहाएं कि तख्ते तक पहुंच जाए
फिर सीधी करवट लिटा कर इसी तरह करें
फिर टेक लगा कर बिठाएं और नर्मी के साथ नीचे को पेट के निचले हिस्से पर हाथ फेरें और कुछ निकले तो धो डालें ।
दोबारा वुजू और गुस्ल की हाजत नहीं
फिर आखिर में सर से पाउं तक काफूर का पानी बहाएं
फिर किसी पाक कपड़े से बदन आहिस्ता से पोंछ दें ।
गुस्ले मय्यित में बे तहाशा पानी न बहाएं आखिरत में एक एक कृतरे का हिसाब है येह याद रखें ।
गुसले मय्यित का बयान
मय्यित को गुस्ल देना फ़र्ज़ किफ़ाया है वहीं बहुत सी फजीलतों और अज्रो सवाब के हुसूल का जरीआ भी है और जो खुलूस दिल से हुसूले सवाब के लिये मय्यित को गुस्ल दे तो अल्लाह की रहमत से गुनाहों की बखिशश का हकदार बन जाता है ।
मय्यित नहलाने की फजीलत
हज़रते सय्यिदुना जाबिर रद्दीअल्लाहुअन्हो से रिवायत है कि ताजदारे रिसालत , शहनशाहे नबुव्वत सलल्लाहोअलयवासं ने फ़रमाया : जिस ने किसी मय्यित को गुस्ल दिया वोह अपने गुनाहों से ऐसा पाको साफ़ हो जाएगा जैसा उस दिन था जिस दिन उस की मां ने उसे जना था ।
चालीस कबीरा गुनाहों की बखिशश का नुस्खा
हदीसे पाक में है : जिस ने किसी मय्यित को गुस्ल दिया और उस के ऐब को छुपाया खुदाए रहमान ऐसे शख्स के चालीस कबीरा गुनाह बख्श देता है ।
कब्र में मैय्यत के उतारने वगैरह की दुआ
बिस्मिल्लाहि व अला मिल्लति रसूलिल्लाहि सल्लल्लाहु व् आला अलैहिवसल्लम।
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
मय्यित की आँखे बन्द करते वक्त , उसके सीधा करते वक्त गुस्ल के वक्त कफन पहनाने के वक्त , चारपायी या ताबूत वगैरह पर रखते वक्त और कब्र में मय्यित के उतारते वक्त यह दुआ मुस्तहब है ।
कब्र पर मिट्टी देते वक्त यह पढ़े
पहली दफा - मिनहा खलक़नाकुम
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
दूसरी दफा - व फीहा नुईदुकुम PARATHA
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
तीसरी दफा - व् मीनहा नुकरिजुकुम तारतन उख़रा
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
दुआए जनाज़ह
बड़ी मैय्यित के लिए
अल्लाहम्मग़ फिरलि हय्यीना व मय्यितिना व शाहिदिना व ग़ाइबिना व सग़ीरिना व कबीरिना व ज़ क रिना व उनसाना अल्लाहुम्म मन् अहयैय त हु मिन्ना फ़ अहयिही अलल् इस्लामि व मन् त वफ़्फ़यतहु मिन्ना फ़ त वफफ़हुँ अलल ईमान
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
नाबालिग लड़के के लिए
अल्लाहुमंजज अलहु लना फर तंव वज़ अलहु लना अज़्रव व् जुख़ रव वज़्र अलहु शाफीऔ व् मुशफ्फ अन.
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
नाबालिग़लड़की के लिए
अल्लाहुमंजज अलहु लना फर तंव वज़ अलहा लना अज़्रव व् जुख़ रव वज़्र अलहा लना शफीअतंव व् मुशफ़फ़अतन
NAMAZ E JANAZA KI DUA |
जनाजा की नमाज Namaz E Janaza फ़र्जे किफ़ाया है कि एक ने भी पढ़ली तो सब बरीउज़्ज़िमा हो गये वरना जिस जिसको खबर पहुंची थी और न पढ़ी गुनहगार हुआ इसकी फ़र्ज़ियत का जो इनकार करे वह काफ़िर है ।
" बचैतु अन ओ वदिदय लिल्लाहि व आला अर ब अ तकबीरावि सलाविल जना ज़ती अरसना ओ लिल्लाहि व् आला वाददू आओ लिहाज़ल मय्यति| इक्वदयतु बिहाज़ल इमामि मु त वज्जिहन एला जि ह तिल का अबतिश् शरीफ़र्ति अल्लाहु अकबर. "
Namaz_E_Janaza_in_Hindi |
फिर कान तक हाथ उठाकर अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ नीचे लाए और नाफ के नीचे हस्वे दस्तूर बाँध ले
फिर सना पढ़े
यानी " सुब्हान कल्लाहुम्मा व् बिहम्दी क व तबार कासमु क व् ताला जददु क व् जल्ल सनाओ क व् लाइलाह गैरु क। "
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! फिर बगैर हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहे और दुरुद शरीफ पढ़े | बेहतर दुरुद सिर्फ वही है जो नमाज Namaz में पढ़ा जाता है अगर कोयी दूसरा दरूद पढ़े जब भी हर्ज नहीं फिर बगैर हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहे और इसके बाद अपने और मय्यित के लिए नीज तमाम मोमिनीन व मुमिनात के लिए , दुआए जनाज़ा , पढ़कर अल्लाहु अकबर कह के दोनों हाथ छोड़ दे और दोनों तरफं सलाम फेर दे ।
नोट : मय्यित नमाज़ ऐ जनाज़ा Namaz E Janaza के वक़्त अगर नाबालिग लड़का है तो तीसरी तकबीर के बाद वह दुआपढ़े जो नाबालिग लड़का के लिए है
और अगर नाबालिग लड़की है तो वह दुआ पढ़े जो नाबालिग लड़की के लिए है और जिसे याद न हो बच्चों के लिये भी बड़ी मैइत की दुआ पढ़ले ।
मय्यित Mayyat के गुस्ल देने के बाद बदन किसी पाक कपड़े से आहिस्ता से पोंछ ले ताकि कफ़न तर ना हो और कफ़न को एक या तीन या पाँच या सात बार धूनी दे ले इससे ज्यादा नहीं फिर कफ़न Kafan यूँ बिछाए कि पहले बड़ी चादर फिर एजार ( तहवन्द ) .
फिर कफर्नी फिर मय्यित Mayyat को उस पर लिटाए और कफनी Kafan पहनाए और दाढ़ी और तमाम बदन पर खुश्बू मले और मवाजए सुजूद यानी माथे नाक , हाथ , घूटने और कदम पर काफूर लगाएं फिर एजार ( तहवन्द ) लपेटे।
पहले बाएँ फिर दाएँ तरफ से फिर लिफाफा लपेटे पहले बाएँ फिर दाएँ तरफ से ताकि दाहिना ऊपर रहे और सर और पाँव की तरफ बाँध दें कि उड़ने का डर न रहे।
औरत को कफ़न Aurat Ka Kafan पहनाकर उसके बाल के दो हिस्से करके कफनी के ऊपर सीना के ऊपर डाल दे और ओढ़नी आधी पीठ के नीचे से बिछा कर सर पर लाकर मुँह पर मिस्ले नकाब के डाल दे कि सीना पर रहे कि इसकी लम्बायी आधी पीठ से सीना तक है.
और चौड़ायी एक कान की लौ से दुसरे कान की लौ तक और यह जो लोग किया करते हैं कि जिन्दगी की तरह उढ़ाते हैं , ग़लत व खिलाफे सुन्नत Sunnat है फिर बदस्तूर एजार व लिफाफा लपेटे फिर सबके ऊपर सोना बंद पिस्तान के ऊपर से रान तक लाकर बाँधे ।
इस तरह मोमिन की मय्यत का आसान कफ़न पहनने का Kafan Pahnane Ka Tarik सुन्नति पूरा तरीका हिंदी में इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे
( १ ) जुरुरी
( २ ) किफायत
( ३ ) सुन्नत / Sunnati
मर्द के लिये कफ़न सुन्नत Kafan Sunnati तीन कपड़े हैं , लिफाफा , एजार , कमीज और औरत के लिए कफने सुन्नत Sunnati पांच कपड़े हैं लिफाफा , एजारकमीज़ , मोदनी और सीना बन्द ।
कफने किफायत मर्द के लिए दो कपड़े हैं लिफाफा व एजार औरत के लिए कफन Kafan किफायत तीन कपड़े हैं लिफाफा , एजार , ओढ़नी या लिफाफा , कमीज , ओढ़नी।
कफने Kafan जुरुरत मर्द औरत दोनों के लिये जो मयस्सर आए और कम से कम इतना तो हो कि सारा बदन ढ़क जाए ।
( आलमगीरीवगैरह )
गुस्ले मय्यित की नियतें - ( नमाज़ ऐ जनाज़ा में मय्यत को गुसल Mayyat ko Gusal देने की नियत )
मस्थित को नहलाना फ़र्जे किफाया है बाज़ लोगों ने गुस्ल Gusal दे दिया तो सब से साकित हो गया नहलाने का तरीका Tarika यह है कि जिस चारपायी या तखया तखता पर नहलाने का इरादा हो उसको तीन या पाँच या सात बार धुनी दें यानी जिस चीज में वह खुश्बू सुलगती हो
उसे उतनी बार चारपाई वगैरह के गिर्द फिराए और उस पर मय्यित Mayyat को लिटा कर नाफ से घुटने तक किसी कपड़े से छुपा दे फिर नहलाने वाला अपने हाथ पर कपड़ा लपेट कर पहले इस्तिन्जा कराए फिर नमाज के ऐसा वुजू कराए यानी मुँह फिर कुहनियों समीत हाथ धोए
फिर सर का मसह करे फिर पाँव धोए मगर मैइत के वुजू में गट्टों तक पहले हाथ धोना और कुल्ली करना और नाक में पानी डालना नहीं है हाँ कोयी कपड़ा या रूई की |
फरेरी भिगोकर दाँतों और मसूढ़ों और होंटो , नथनों पर फेर दे फिर सर और दाढ़ी के बाल हों तो गुल खैरु से धोये यह न हो तो पाक साबुन | बेसन या यह न हो तो खाली पानी ही काफी है
फिर बाएँ करवट पर लिटा कर सर से पाँव तक बेरी का पानी बहाए कि तख्ता तक पहुँच जाए फिर दाहनी करवट पर लिटा कर यूँ ही करें और बेरी के पत्ते का उबाला हुआ पानी न हो तो खालिस पानी नीम गर्म काफी है
फिर टेक लगा कर उठाए और नर्मी के साथ नीचे को पेट पर हाथ फेरे अगर कुछ निकले तो धो डाले वुजू और गुस्ल Gusal दुबारा न कराए फिर आखिर में सर से पांव तक काफूर का पानी बहाए फिर इसके बदन को किसी कपड़े से धीरे धीरे पोंछ दें ।
इन्तिवाह : एक बार सारे बदन पर पानी बहाना फर्ज़ है और तीन मरतबा सुन्नत् जहाँ गुस्ल Gusal दें मुस्तहब यह है कि प्रदा कर लें कि सिवाए नहलाने वालों और मददगारों के दुसरान देखे ।
मसाला : वुजू पहले होना चाहिये नहलाने के बाद वुजू ग़लत कफ़न का बयान मय्यित Mayyat को कफ़न देना फर्जे किफ़ाया है ।
जनाज़ा के पहले मय्यत को गुसल देना का सुन्नत तरीका Mayyat Ko Gusal Ka Tarika