मुर्दा अगर पानी में गिर जाए 

मुर्दा अगर पानी में गिर गया या उस पर मीह बरसा कि सारे बदन पर पानी बह गया गुस्ल हो गया , मगर ज़िन्दों पर जो गुस्ले मय्यित वाजिब है येह उस वक़्त बरियुज्जिम्मा होंगे कि नहलाएं , लिहाजा अगर मुर्दा पानी में मिला तो ब निय्यते गुस्ल उसे तीन बार पानी में हरकत दे दें कि मस्नून अदा हो जाए और एक बार हरकत दी तो वाजिब अदा हो गया , मगर सुन्नत का मुतालबा रहा । 



अगर मय्यित के बदन की खाल झड़ती हो 

अगर मय्यित के जिस्म के किसी हिस्से की खाल खुद ब खुद झड़ रही हो तो उस पर पानी न डाला जाए और उस खाल को मय्यित के साथ दफ्ना दिया जाए । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )

मय्यित का बदन अगर ऐसा हो गया कि हाथ लगाने से खाल उधड़ेगी तो हाथ न लगाएं सिर्फ पानी बहा दें । 



मय्यित के बाल व नाखून काटना 

मय्यित की दाढ़ी या सर के बाल में कंघा करना या नाखुन तराशना या किसी जगह के बाल मूंडना या कतरना या उखाड़ना , नाजाइज़ व मकरूहे तहरीमी है बल्कि हुक्म येह है कि जिस हालत पर है उसी हालत में दफ्न कर दें , हां अगर नाखुन टूटा हो तो ले सकते हैं और अगर नाखुन या बाल तराश लिये तो कफ़न में रख दें ।  

मय्यित के जिस्म का जो उज्व बीमारी वगैरा की वज्ह से निकाला गया हो उन सब को दफनाना होगा । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 


 इस्लमी बहतों के लिये मदती फूल 

हैज़ या निफ़ास वाली या जुनुबिया का इन्तिकाल हुवा तो एक ही गुस्ल काफ़ी है कि गुस्ल वाजिब होने के कितने ही अस्वाब हों सब एक गुस्ल से अदा हो जाते हैं 

बेहतर है कि मरहूमा के करीबी रिश्तेदार मसलन मां , बेटी , बहन , बहू वगैरा अगर हों तो उन्हें भी गुस्ल में शामिल कर लिया जाए क्यूंकि घर वाले नर्मी से गुस्ल देंगे । 

हामिला ( Pregnant ) भी गुस्ल दे सकती है 

नहलाने वाली बा तहारत हो और अगर जुनुबिया ( जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो ) ने गुस्ल दिया तो कराहत है मगर गुस्ल हो जाएगा । 

अगर मय्यित के नाखूनों पर नेल पोलिश लगी हो और मय्यित को तक्लीफन हो तो जिस कदर मुमकिन हो सके छुड़ाएं , इस के लिये रीमूवर ( Remover ) इस्ति माल कर सकते हैं । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

गुस्ल देते वक्त जो चादर वगैरा मय्यित को उढ़ाई जाती है जब तक उस के नापाक होने का यकीन न हो उसे नापाक नहीं कहेंगे लिहाज़ा उसे इस्ति'माल किया जा सकता है । ( दारुल इफ़्ता अले सुन्नत ) 

मरने के बाद जीनत करना ( मेक अप व मेहंदी लगाना वगैरा ) नाजाइज़ है । ( दारुल इफ़्ता अले सुन्नत ) 

अवाम में येह मशहूर है कि गुस्ले मय्यित के लिये जाने वाली इस्लामी बहनों के साथ रूहानी मसाइल हो जाते हैं इस की कोई अस्ल नहीं येह महज़ एक वहम है , इसी तरह येह भी कहा जाता है कि गैर शादीशुदा को मय्यित के करीब नहीं आना चाहिये इस की भी कोई अस्ल नहीं । ( दारुल इफ़्ता अले सुन्नत ) 

शोहर अपनी बीवी के जनाजे को कन्धा भी दे सकता है , क़ब्र में भी उतार सकता है और मुंह भी देख सकता है सिर्फ गुस्ल देने और बिला हाइल बदन को छूने की मुमानअत है ।