ग़ुस्ले मय्यत के जरुरी इस्लामिक सुन्नति मालूमात   

मय्यित के गुस्ल व कफ़न और दफ्न में जल्दी चाहिये कि हदीस में इस की बहुत ताकीद आई है । 

मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान  फ़रमाते हैं : हत्तल इमकान दफ्न में जल्दी की जाए , बिला ज़रूरत देर लगाना सख्त नाजाइज़ है कि में मय्यित के फूलने फटने और उस की बे हुरमती का अन्देशा है । ( मिरातुल मनाजीह , जनाजों की किताब , 2/447 ) 


एक मरतबा सारे बदन पर पानी बहाना फ़र्ज़ है और तीन मरतबा सुन्नत , जहां गुस्ल दें मुस्तहब येह है कि पर्दा कर लें कि सिवा नहलाने वालों और मददगारों के दूसरा न देखे , नहलाते वक्त ख्वाह इस तरह लिटाए जैसे कब्र में रखते हैं या किब्ले की तरफ़ पाउं कर के या जो आसान हो करें । 




नहलाने वाले के लिये जरुरी मालूमात  

नहलाने वाला बा तहारत हो । अगर जुनुबी शख्स ( जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो चुका हो ) ने गुस्ल दिया तो कराहत है मगर गुस्ल हो जाएगा । 

अगर बे वुजू ने नहलाया तो कराहत नहीं । 

बेहतर येह है कि नहलाने वाला मय्यित का सब से ज़ियादा करीबी रिश्तेदार हो , वोह न हो या नहलाना न जानता हो तो कोई और शख्स जो अमानत दार और परहेज़गार हो । 

नहलाने वाले के पास खुश्बू सुलगाना मुस्तहब है अगर मय्यित के बदन से बू आए तो उसे पता न चले वरना घबराएगा , नीज़ उसे चाहिये कि ब क़दरे ज़रूरत आ'जाए मय्यित की तरफ़ नज़र करे , बिला ज़रूरत किसी उज्च की तरफ़ न देखे कि मुमकिन है उस के बदन में कोई ऐब हो जिसे वोह छुपाता था । 

मर्द को मर्द नहलाए और औरत को औरत , मय्यित छोटा लड़का है तो उसे औरत भी नहला सकती है और छोटी लड़की को मर्द भी , छोटे से येह मुराद कि हद्दे शहवत को न पहुंचे हों । 

गुस्ले मय्यित के बाद गुस्साल ( गुस्ल देने वाले को गुस्ल करना मुस्तहब है । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )