मुतफ़रिक 

अगर मय्यित के जिस्म के ज़ख्म पर पट्टी लगी हो , न उखेड़ें । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

केन्यूला लगाने के बाद जो पट्टी लगाई गई है नीम गर्म पानी डालने से अगर बा आसानी निकल जाए तो निकाल दें वरना छोड़ दें ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

गुस्ले मय्यित के बाद अगर खून जारी हो जाए और इस सबब से कफ़न नापाक हो जाए तो न गुस्ल ( दोबारा ) दिया जाएगा और न ही कफन तब्दील किया जाए । बल्कि इस तरह का कोई भी मुआमला हो जाए तो गुस्ल और तक्फ़ीन में से कुछ भी दोबारा न किया जाए अलबत्ता बेहतर है कि जहां से खून बह रहा हो वहां ज़ियादा रूई रख दें कि कफ्त ख़राब न हो । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

नहलाने के बाद अगर नाक कान मुंह और दीगर सूराखों में रूई रख दें तो हरज नहीं मगर बेहतर येह है कि न रखें ।

मय्यित के इस्तिन्जा की जगह को ढेलों से साफ़ करने में हरज नहीं मगर बेहतर है कि हर उस चीज़ के इस्ति माल से बचा जाए जिस से मय्यित को मा'मूली सी भी तक्लीफ़ पहुंचने का अन्देशा हो । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

बगलें और दीगर आज़ा जहां पानी बा आसानी नहीं पहुंचता वहां तवज्जोह से पानी बहाया जाए । 

गुस्ल के दौरान पानी डालते वक्त दुआएं या कलिमा वगैरा पढ़ना जरूरी नहीं , पानी से पाकी हासिल हो जाएगी । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

चारपाई पर भी गुस्ल दिया जा सकता है मगर बेहतर है कि इस के लिये कोई चारपाई मख्सूस कर ली जाए फिर तमाम गुस्ल उसी चारपाई पर दिये जाएं लेकिन अगर किसी ने ऐसा नहीं किया और इस्ति'माली चारपाई पर भी गुस्ल दिया तो हरज नहीं लेकिन बाद में भी उस चारपाई को इस्ति'माल किया जाए यूंही छोड़ देना इस्राफ़ है । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत )

बा'ज़ जगह दस्तूर है कि उमूमन मय्यित के गुस्ल के लिये कोरे घड़े बुधने ( मिट्टी के नए मटके और लोटे ) लाते हैं इस की कुछ ज़रूरत नहीं , घर के इस्ति'माली घड़े लोटे से भी गुस्ल दे सकते हैं और बा'ज़ येह जहालत करते हैं कि गुस्ल के बाद तोड़ डालते हैं , येह नाजाइज़ व हराम है कि माल जाएअ करना है और अगर येह ख़याल हो कि नजिस हो गए तो येह भी फुजूल बात है कि अव्वलन तो उस पर छीटें नहीं पड़ती और पड़ी भी तो राजेह येह है कि मय्यित का गुस्ल नजासते हुक्मिया दूर करने के लिये है तो मुस्ता'मल पानी की छीटें पड़ी और मुस्ता'मल पानी नजिस नहीं , जिस तरह ज़िन्दों के वुजू व गुस्ल का पानी और अगर फ़र्ज़ किया जाए कि नजिस पानी को छीटें पड़ी तो धो डालें , धोने से पाक हो जाएंगे और अक्सर जगह वोह घड़े बुधने मस्जिदों में रख देते हैं अगर निय्यत येह हो कि नमाजियों को आराम पहुंचेगा और उस का मुर्दे को सवाब , तो येह अच्छी निय्यत है और रखना बेहतर और अगर येह ख़याल हो कि घर में रखना नुहसत है तो येह निरी हमाकृत और बाज़ लोग घड़े का पानी फेंक देते हैं येह भी हराम है । ( बहारे शरीअत , हिस्सा , 4 , 1816 ) 

गुस्ले मय्यित के बाद मय्यित की आंखों में सुरमा लगाना खिलाफे सुन्नत है । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

मय्यित के मुंह में बत्तीसी लगी हो और अगर बा आसानी निकल सके कि मुर्दे को तकलीफ़ न हो तो निकाल दी जाए और अगर तक्लीफ़ का अन्देशा हो तो न निकाली जाए । ( दारुल इफ्ता अहले सुन्नत ) 

बद मज़हब की मय्यित को किसी ने गुस्ल देने के लिये कहा तो न जाना चाहिये क्यूंकि बद मज़हब के साथ इस तरह का एहसान करने की शरअन इजाजत नहीं । ( दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत ) 

औरत अपने शोहर को गुस्ल दे सकती है ।